सोमवार, 4 जून 2012

ग़ज़ल






दुनिया में जिधर देखो हजारो रास्ते  दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाए बो रास्ते नहीं मिलते

किस को गैर कहदे हम और किसको  मान  ले अपना
मिलते हाथ सबसे है दिल से दिल नहीं मिलते

करी थी प्यार की बाते कभी हमने भी फूलो से
शिकायत सबको उनसे है क़ी उनके लब नहीं हिलते

ज़माने की हकीकत को समझ  जाओ तो अच्छा है
ख्बाबो  में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते

कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते है
मुश्किल अपनी ये की हकीक़त में नहीं मिलते


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई

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  2. किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
    मिलते हाथ सबसे है दिल से दिल नहीं मिलते
    वाह बहुत खूबसूरत अहसास

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