गुरुवार, 5 जुलाई 2012

लेखनी का कागज से स्पर्श












अपने अनुभबों,एहसासों ,बिचारों को
यथार्थ रूप में
अभिब्यक्त करने के लिए
जब जब मैनें लेखनी का कागज से स्पर्श किया
उस समय मुझे एक बिचित्र प्रकार के
समर से आमुख होने का अबसर मिला
लेखनी अपनी परम्परा प्रतिष्टा मर्यादा के लिए प्रतिबद्ध थी
जबकि मैं यथार्थ चित्रण के लिए बाध्य था
इन दोनों के बीच कागज मूक दर्शक सा था
ठीक उसी तरह जैसे
आजाद भारत की इस जमीन पर
रहनुमाओं तथा अन्तराष्ट्रीय बित्तीय संस्थाओं के बीच हुए
जायज और दोष पूर्ण अनुबंध को
अबाम को मानना अनिबार्य सा है
जब जब लेखनी के साथ समझौता किया
हकीकत के साथ साथ कल्पित बिचारों को न्योता दिया
सत्य से अलग हटकर लिखना चाहा
उसे पढने बालों ने खूब सराहा
ठीक उसी तरह जैसे
बेतन ब्रद्धि के बिधेयक को पारित करबाने में
बिरोधी पछ के साथ साथ सत्ता पछ के राजनीतिज्ञों
का बराबर का योगदान रहता है
आज मेरी प्रत्येक रचना
बास्तबिकता से कोसों दूर
कल्पिन्कता का राग अलापती हुयी
आधारहीन तथ्यों पर आधारित
कृतिमता के आबरण में लिपटी हुयी
निरर्थक बिचारों से परिपूरण है
फिर भी मुझको आशा रहती है कि
पढने बालों को ये
रुचिकर सरस ज्ञानर्धक लगेगी
ठीक उसी तरह जैसे
हमारे रहनुमा बिना किसी सार्थक प्रयास के
जटिलतम समस्याओं का समाधान
प्राप्त होने कि आशा
आये दिन करते रहतें हैं
अब प्रत्येक रचना को
लिखने के बाद
जब जब पढने का अबसर मिलता है
तो लगता है कि
ये लिखा मेरा नहीं है
मुझे जान पड़ता है कि
मेरे खिलाफ
ये सब कागज और लेखनी कि
सुनियोजित साजिश का हिस्सा है
इस लेखांश में मेरा तो नगण्य हिस्सा है
मेरे हर पल कि बिबश्ता का किस्सा है
ठीक उसी तरह जैसे
भेद भाब पूर्ण किये गए फैसलों
दोषपूर्ण नीतियों के नतीजें आने पर
उसका श्रेय
कुशल राजनेता
पूर्ब बर्ती सरकारों को दे कर के
अपने कर्तब्यों कि इतिश्री कर लेते हैं


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  2. आदर्श और हकीकत में हमेशा ही फांसला होता है ...
    लाजवाब प्रस्तुति है ...

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  3. सामयिक रचना, शुभकामनाएँ. मेरे ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति के लिए ह्रदय से आभार.

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