मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

दुनियां का खेला



ये पैसों की दुनिया ये काँटों की दुनिया
यारों ये दुनिया जालिम बहुत है
अरमानो की माला मैनें जब भी पिरोई
हमको ये दुनिया तो माला पिरोने नहीं देती..

ये गैरों की दुनियां ये काँटों की दुनिया
दौलत के भूखों और प्यासों की दुनिया
सपनो के महल मैंने जब भी संजोये 
हमको ये दुनिया तो सपने संजोने नहीं देती..

जब देखा उन्हें और उनसे नजरें मिली 
अपने दिल ने ये माना की हमको दुनिया मिली
प्यार पाकर के जब प्यारी दुनिया बसाई
हमको ये दुनिया तो उसमें भी सोने नहीं देती..

ये काँटों की दुनिया -ये खारों की दुनिया
ये बेबस अकेले लाचारों की दुनिया
दूर रहकर उनसे जब मैं रोना भी चाहूं
हमको ये दुनिया अकेले भी रोने नहीं देती..


ये दुनिया तो हमको तमाशा ही लगती
हाथ अपने   हमेशा निराशा ही लगती
देख दुनिया को जब हमने खुद को बदला 
हमको ये दुनिया तो बैसा भी होने नहीं देती... 

काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

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