सोमवार, 11 मई 2015

जुर्म सज़ा और जमानत ( इक कड़बी सच्चाई )

जुर्म सज़ा और जमानत ( इक कड़बी सच्चाई )


सलमान के हिट एंड रन केस का
फैसला  क्या आया
मीडिया  का असली चेहरा सामने आ गया
ये बात भी सबको क्लियर हो गयी
देश का कानून आपकी औकात देखकर बात करता है
फ़िल्मी सितारों की नजर में
आदमी की जिंदगी और गरीबी की क्या कीमत है
आज भी हमारे देश में दो तरह के कानून हैं-
एक अमीरों के लिए और दूसरे गरीबों के लिए।
हमारी अदालतों का रवैया भी अमीरों और गरीबों के लिए अलग-अलग दो तरह का है।
कौन करेगा न्यायपालिका का ईलाज? कौन न्याय-प्रणाली को कमजोर और गरीबपरस्त बनाएगा।
इसी तरह  वॉलीबुड अभिनेता सलमान खान को
सजा मिलने के चंद घंटों के भीतर ही
हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करके,सुनवाई करके जमानत दे दी।
सजा मिलने में जहाँ 13 साल लग गए
वहीं जमानत मिलने में 13 घंटे भी नहीं लगे।
सवाल उठता है कि देश के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में
जो 11 लाख मुकदमे लंबित हैं उनपर भी इसी तरह तात्कालिकता क्यों नहीं दिखाई जाती?
क्यों एक आम आदमी को दशकों तक कहा जाता है
कि अभी आपके मुकदमें का नंबर नहीं आया है
और किसी रसूखदार  लालू,माया,तीस्ता या सलमान के मामले की सुनवाई
तमाम लाइनों को तोड़कर तत्काल कर ली जाती है?
सवाल उठता है कि ऐसा कब तक चलेगा?
कब तक पुलिस,सीबीआई,कानून और अदालतें चांदी के सिक्कों की खनखनाहट पर थिरकते रहेंगे?
कब और कैसे कानून और अदालतें गरीबपरस्त होंगे?
शायद कभी नहीं!!!
दिन भर हाई प्रोफाइल ड्रामा
समाचार चैनलो के पास कुछ बचा नही
लगे सुबह से दिखाने
माँ रो रही
बहन की आखे नम
पूरा देश रो रहा है
हद होती है स्वार्थ और कर्तब्य बिमुखता की
आज से 13 साल पहले फुटपाथ में सोये शख्श ( नुरुल्ला शरीफ)  की मौत हुई
किसी भी समाचार पत्र और चैनल नें शायद ही पीड़ित का नाम भी लिया हो
या फिर  परिबार को दिखाया हो
उनके परिवार को ढूंढ कर उनकी व्यथा भी भी दिखा देते
तो शायद पत्रकारिता की सही समझ आम लोगो को भी हो पाती
शराब पीकर ,अंधाधुंध फुटपाथ पर सोये गरीबो को कुचला एक की मौत और 4 बुरी तरह घायल
ये खबर सही मायने में १३ साल बाद भी सही अपना सही अर्थ पाती
अब  न्याय मिला तो वो भी 13 साल बाद
उसमे भी वी आई पी ट्रीटमेंट
साधारणतया न्यायपालिका फैसले के तुरन्त बाद
निर्णय की कॉपी नही देती
दो तीन  दिन लग जाते हैं  कॉपी हासिल करने में
लगता है जैसे  सब तय था
सेशन कोर्ट से निर्णय की कॉपी भी मिल गई
हाईकोर्ट में अर्जी भी लग गई और दो दिन की अंतरिम जमानत भी
13 साल की क़ानूनी लड़ाई के बाद 5 साल की सजा मुकर्र
अंतरिम जमानत फिर  2 दिनों बाद पूरी जमानत
फिर हाई कोर्ट में कितना  लम्बा केस चलेगा ,कहना मुश्किल है
परिणाम क्या आएगा बताने की आवश्यकता नही
लेकिन क्या कभी  मिडिया ने देखा है
देश भर के जेलो में लाखों  ऐसे लोग बन्द है
जो महज कुछ रुपयो का जुरमाना अदा कर छूट सकते है
अब गुनाह तो गुनाह है बॉलीवुड के दबंग का हो या छोटे अपराध का
सबका अपना मत है
लेकिन मेरा अपना मानना है
कि देर से किया हुआ न्याय ,न्याय नहीं होता है।
इस  मामले मे 13 वर्ष बाद आया निर्णय
संत्रास मे बीते 13 साल किसे वापस होंगे
न पीड़ित को न पीड़ित परिवार के उन रिश्तेदारो को जिन्होंने सब कुछ भुगता है
क्योकि 60 वर्ष की आजादी के बाद भी
उन्हें छत मयस्सर नहीं हुई और
फुटपाथ पर सोने पर उन्हें मौत नसीब हुई।
क्या न्याय व्यवस्था मे प्रयोग नहीं हो सकता
यदि कुछ न्याय इस तरह होता जिसमे दोषी को पीड़ित के न सिर्फ आजीवन भरणपोषण करने का दंड मिलता
अपितु उसको आजीवन किसी भी प्रकार की गाडी चलाने पर प्रतिबंधित किया जाता।
पर ऐसा होता तो नहीं है न।
अगर  सरकारें हरेक गाँव तक  बिजली पहुंचा दें
तो दिल्ली मुम्बई में फुटपाथ पे सोने
और किसी शराबी की गाडी के नीचे दब के
कुत्ते की मौत मरने का ख़तरा झेलने वाले
लोगों की संख्या में शायद  कमी आ जायेगी ।
सरकार अगर काम करने लगे
तो कौन जाएगा दिल्ली मुम्बई और लुधियाना का नारकीय जीवन जीने
कौन हैं ये लोग जो चले आते हैं
अपना घर बार बीवी बच्चे और बूढ़े माँ बाप को छोड़ के
यहां किसी फुटपाथ पे जीने और कुत्ते की मौत मरने
क्यों चले आते हैं ?
कौन है जिम्मेवार ?
मीडिया
या फिर न्याय पालिका
या फिर कार्यपालिका
या फिर हम सब
जो हर जुल्म नियति मान  कर  सह गए
शायद
अच्छे दिन कब आएं
जब कानून की नजर में
हर भारतीय की जान की एक सी कीमत हो। ।






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