शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

ग़ज़ल

हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली 
दुआओं का असर होता  दुआ से काम लेता हूँ

मुझे फुर्सत नहीं यारों कि  माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता  है  उसे मैं थाम लेता हूँ

खुदा का नाम लेने में क्यों  मुझसे  देर हो जाती 
खुदा का नाम से पहले मैं उनका नाम लेता हूँ


मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ


सब कुछ तो  बिका करता  मजबूरी के आलम में
सांसों के जनाज़े  को सुबह से शाम लेता हूँ 


सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत  का 
जितना  है जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ 
 


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

लेखनी का कागज से स्पर्श












अपने अनुभबों,एहसासों ,बिचारों को
यथार्थ रूप में
अभिब्यक्त करने के लिए
जब जब मैनें लेखनी का कागज से स्पर्श किया
उस समय मुझे एक बिचित्र प्रकार के
समर से आमुख होने का अबसर मिला
लेखनी अपनी परम्परा प्रतिष्टा मर्यादा के लिए प्रतिबद्ध थी
जबकि मैं यथार्थ चित्रण के लिए बाध्य था
इन दोनों के बीच कागज मूक दर्शक सा था
ठीक उसी तरह जैसे
आजाद भारत की इस जमीन पर
रहनुमाओं तथा अन्तराष्ट्रीय बित्तीय संस्थाओं के बीच हुए
जायज और दोष पूर्ण अनुबंध को
अबाम को मानना अनिबार्य सा है
जब जब लेखनी के साथ समझौता किया
हकीकत के साथ साथ कल्पित बिचारों को न्योता दिया
सत्य से अलग हटकर लिखना चाहा
उसे पढने बालों ने खूब सराहा
ठीक उसी तरह जैसे
बेतन ब्रद्धि के बिधेयक को पारित करबाने में
बिरोधी पछ के साथ साथ सत्ता पछ के राजनीतिज्ञों
का बराबर का योगदान रहता है
आज मेरी प्रत्येक रचना
बास्तबिकता से कोसों दूर
कल्पिन्कता का राग अलापती हुयी
आधारहीन तथ्यों पर आधारित
कृतिमता के आबरण में लिपटी हुयी
निरर्थक बिचारों से परिपूरण है
फिर भी मुझको आशा रहती है कि
पढने बालों को ये
रुचिकर सरस ज्ञानर्धक लगेगी
ठीक उसी तरह जैसे
हमारे रहनुमा बिना किसी सार्थक प्रयास के
जटिलतम समस्याओं का समाधान
प्राप्त होने कि आशा
आये दिन करते रहतें हैं
अब प्रत्येक रचना को
लिखने के बाद
जब जब पढने का अबसर मिलता है
तो लगता है कि
ये लिखा मेरा नहीं है
मुझे जान पड़ता है कि
मेरे खिलाफ
ये सब कागज और लेखनी कि
सुनियोजित साजिश का हिस्सा है
इस लेखांश में मेरा तो नगण्य हिस्सा है
मेरे हर पल कि बिबश्ता का किस्सा है
ठीक उसी तरह जैसे
भेद भाब पूर्ण किये गए फैसलों
दोषपूर्ण नीतियों के नतीजें आने पर
उसका श्रेय
कुशल राजनेता
पूर्ब बर्ती सरकारों को दे कर के
अपने कर्तब्यों कि इतिश्री कर लेते हैं


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  

बुधवार, 4 जुलाई 2012

भारत के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग









भारत के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग 

इन ज्योतिर्लिंगों का अपना एक अलग महत्व है.सावन के महीने में भारत के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन  श्रद्धालु   रोज करते हैं।सावन के महीने में भगवान शिव के दर्शन करने से सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं
 

1-सोमनाथ सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर की यह मान्यता है कि जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चन्द्रदेव ने की थी। विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है। हर बार यह बनता और बिगड़ता रहा है।

2- मल्लिकार्जुन यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। भारत के अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते है। कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते है।

3- महाकालेश्वर यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है। उज्जैनवासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे है


4- ओंकारेश्वर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में स्थित है। जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊँ का आकार बनता है। ऊँ शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊँ के साथ ही किया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग ओंकार अर्थात ऊँ का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।

5- केदारनाथ केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है। यह उत्तराखंड में स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है। 

6- भीमाशंकर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रद्वा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर होते है तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते है।

7- काशी विश्वनाथ विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है। काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है। इस स्थान की मान्यता है कि यह स्थान सदैव बना रहेगा अगर कभी पृथ्वी पर किसी तरह की कोई प्रलय आती भी है तो इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को इसके स्थान पर रख देगें।

8- त्रयम्बकेश्वर यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरु होती है। भगवान शिव का एक नाम त्रयम्बकेश्वर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।


9- वैद्यनाथ श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवाँ स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथधाम कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के सन्थाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है

10- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है। धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। द्वारका पुरी से भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।


11- रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरं नामक स्थान में स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है।


12- घृष्णेश्वर मन्दिर घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप स्थित हैं। यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व श्री जनार्दन महाराज की समाधि भी है।




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

गठबंधन धर्म की कीमत



गठबंधन धर्म की कीमत

अकबर जब पहली बार हाथी पर बैठे तो उन्होंने लगाम अपने हाथ में मांगी. उन्हें बताया गया कि हाथी को लगाम नहीं होती उसे तो अंकुश से नियंत्रित किया जाता है. तो अकबर ने कहा कि अंकुश उनके हाथ में दे दी जाए. उन्हें बताया गया कि अंकुश तो महावत के हाथ में होती है, आपको नहीं मिल सकती. ये सुन अकबर तुरंत हाथी से नीचे उतर गए और कहा कि जिसका अंकुश मेरे हाथ में हो वो काम मैं नहीं करता. इतिहास गवाह है कि अकबर कितने बड़े राजा थे.
मनमोहन जब से रिमोट कंट्रोल प्रधानमंत्री बने हैं तबसे वो कुछ भी अच्छा नहीं कर पा रहे. आज भारतीय मुद्रा रुपये की कीमत दिन पर दिन गिरती जा रही है. महंगाई और भ्रष्टाचार ने देश की रफ्तार रोक दी है. ऊपर से प्रधानमंत्री कहते हैं कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है. वो कैसे अर्थशास्त्री हैं जो अपनी गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं. मनमोहन सिंह एक नाकाम प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने देश को गर्त में धकेला है और इसकी वजह ये है कि वो हर काम सोनिया गांधी के इशारे पर करते हैं.एक अर्थशास्त्री के तौर पर भी मनमोहन जी असहाय दिख रहे हैं. लगता है कि वो भारत के अर्थशास्त्र को नहीं समझ पाए. उन्होंने भारत को आधार देनेवाले आतंरिक निवेशों की तरफ बहुत कम ध्यान दिया, वो रुपये के अवमूल्यन और महंगाई को रोकने में सफल नहीं रहे और ना ही उनके पास कोई रोडमैप है जिससे हम आनेवाले दिनों में एक बेहतर अर्थव्यवस्था की उम्मीद कर सकें.
व्यक्ति का किसी विषय का विशेषज्ञ होना उसके नेतृत्व क्षमता की गारंटी नहीं होता है. कोई प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हो, नोवेल पुरस्कार विजेता लेखक हो, नामीगिरामी सर्जन हो, अथवा सुस्थापित व्यवसायी हो, तो यह मान कर चलना भूल होगी कि वह प्रधानमंत्री के तौर पर भी सफल होगा ही. डॉ. मनमोहन सिंह वास्तव में उच्चस्तरीय अर्थशास्त्री हैं या प्रशंसक उनकी योज्ञता बड़ा-चढ़ाकर बताते हैं यह कहना कठिन है. बहरहाल उनमें नेतृत्व एवं कठोर निर्णय की क्षमता है, यह वे नहीं सिद्ध कर सके हैं.हमलोगों को याद रखना चाहिए कि अर्थशास्त्र में नोबेल पुरुस्कार पानेवाले कई लोगों के सिद्धांत भी गलत साबित हुए हैं और उनकी देखरेख में चल रही कंपनियां धराशाई भी हुई हैं. इससे साबित होता है कि अर्थशास्त्र कोई कला या विज्ञान नहीं है. राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र ये दोनों ही अलग हैं. हाँ ये भी सच है कि हाल के दिनों में इन्होंने सिर्फ लेबल चिपकाने वाला काम किया है चाहे वो मुद्रास्फीति हो या घाटे का बजट.देश के पूँजीपतियों, नेताओं, नौकरशाहों और मीडिया ने मनमोहन सिंह को अर्थशास्त्री बनाया था. उनमें तो नेतृत्व की क्षमता है और ही निर्णय लेने की. देश में 25 करोड़ लोग आधा पेट भोजन करते है और आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे रहते है. इनसे सफल अर्थशास्त्री तो हमारी माँ और बहनें है, जो गरीबी में भी परिवार का भरण और पोषण कर रही हैं. मनमोहन जी को अर्थशास्त्र गृहिणियों से सीखने की जरूरत है.
मनमोहन सिंह एक असफल प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री दोनों हैं. वो गठबंधन धर्म को ऊपर और राष्ट्रधर्म को बाद में रखते हैं. उनकी ही नीतियों या फैसला कर पाने की वजह से देश की दुर्दशा हो रही है.



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना