शुक्रवार, 1 मई 2015

बिश्व मजदूर दिवस

आज बिश्व मजदूर दिवस है आज के दिन श्रमिक बर्ग ही जो हालत है उसे देखकर मजदूर दिबस मनाने की कल्पना ही बेमानी से लगती है।  पूंजी पति और ताकतबर लोगों के द्वारा किसान ,मजदूर और गरीब लोगों के शोषण की ख़बरें आये दिन सुर्खियां बनती  रहती है।
श्रम ही पूजा है, को मानने बाले मजदुर भाईओं को समर्पित एक रचना। 





ख्बाब था मेहनत के बल पर , हम बदल डालेंगे किस्मत
ख्बाब केवल ख्बाब बनकर, अब हमारे रह गए हैं

कामचोरी, धूर्तता, चमचागिरी का अब चलन है
बेअरथ से लगने लगे है ,युग पुरुष जो कह गए हैं

दूसरों का किस तरह नुकसान हो सब सोचते है
त्याग ,करुना, प्रेम ,क्यों इस जहाँ से बह गए हैं

अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पौरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं

नाज हमको था कभी पर, आज सर झुकता शर्म से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे  ढह गए हैं



मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

मौत का मंजर

मौत का मंजर



कल शाम टी बी पर एक घटना देखी 
लाचार मजबूर किसान 
इस उम्मीद के साथ
तप्ति  धूप में
बृक्ष पर खड़ा होकर 
नेताओं के शब्दों को ध्यान से सुनता हुआ 
कि शायद अब उसके हालात बदल जाएँ
अचानक क्या हुआ 
कि उसे शब्द खोकले लगने लगे 
आशायें  चकनाचूर होते दिखने लगी 
नेताओं का असली स्वरुप नजर आने  लगा
और इस मिथ्या संसार को 
उसने अलबिदा करने का मन बना लिया 
सिस्टम ने एक किसान की जान ही नहीं ली 
अपितु 
इस घटना ने 
नेताओं की सम्बेदन हीनता को ही  उजागर नहीं किया 
बल्कि पुलिस का गैर जिम्मेदाराना ब्यबहार भी दिखा दिया 
तमाशबीन दर्शकों का असली चेहरा भी सामने ला दिया
धरती पुत्र किसान को भी ये अहसास भी  करा दिया 
कोई किसी की लड़ाई नहीं लड़ता है 
अपने बजूद को बचाने के लिए 
हर एक को खुद आगे आना होगा 
ना की मजबूर  होकर
आत्मघाती कदम उठाना। 


मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

चार धाम की यात्रा


आज से चार धाम की यात्रा की शुरुआत हो गयी है।  हिन्दू धर्म में चार धाम की यात्रा का बहुत महत्ब है. चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है।
 
यमुनोत्री

चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।


गंगोत्री

कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।



केदारनाथ

रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।









बदरीनाथ

नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।








विद्वानों ने चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
- See more at: http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-gangotriyamunotri-open-the-valve-which-began-the-journey-from-birth-to-salvation-12287178.html#sthash.RDukF5de.dpuf
विद्वानों ने चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
- See more at: http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-gangotriyamunotri-open-the-valve-which-began-the-journey-from-birth-to-salvation-12287178.html#sthash.RDukF5de.dpuf
चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से १९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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गुरुवार, 12 मार्च 2015

ऊहापोह



गर्मी के दिन
दोपहर का समय 
आग उगलता सूरज
पसीने से नहाते श्रमिक लोग 
शीतलता का आनंद उठाते 
अपने कार्यालय में सरकारी महकमे के उँचे लोग 
बीरान रास्तों पर 
रोजी रोटी तलाशते 
ऑटो रिक्शा बाले 
रात्रि में कार्य करने के लिए 
ऊर्जा जुटाते 
छाया में सोते कुत्ते 
ठीक सिस्टम की तरह 
अपने को सही करने की ऊहापोह 
में ब्यस्त। 

मदन मोहन सक्सेना




बुधवार, 10 दिसंबर 2014

आज विश्व मानवाधिकार दिवस है


 आज विश्व मानवाधिकार दिवस है

कहने को शुभकामनाओ का सिलसिला तो जारी है 
क्योंकि-
आज विश्व मानवाधिकार दिवस है

पर सोचने की बात ये है कि 
हम में से कितने अपने मानवाधिकार की सुरक्षा के प्रति सजग हैं
और उसके लिए कितने प्रयास रत हैं 
चन्द रस्म अदायगी और औपचारिकताओं को पूर्ण करके
क्या बास्तब में समाज के सबसे निचले तबकों 
के मानब अधिकारों की रक्षा कर पायेंगें 
या फिर ये अन्तहीन  सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा 

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

ख्बाबों का आसमान

ख्बाबों का आसमान 



मैं 
एक युबा 
छूना चाहती हूँ 
ख्बाबों का आसमान 
किन्तु 
मेरे सपनों के बीच 
कभी शिक्षक
कभी न्यायधीश 
तो कभी राजनेता 
कभी तथाकथित संत 
कभी पत्रकार 
मेरे बजूद को 
तार तार करने का 
कोई मौका नहीं छोड़ते।
अब मैंने भी प्राण ले लिया है कि 
उन सबकी इज्जत को
समाज में मिटटी में मिला दूंगी 
जो मेरे से 
किसी भी तरह 
नाइंसाफी करेगा।

बुधवार, 13 नवंबर 2013

दिल के पास


दिल के पास
 
ऐसे कुछ अहसास होते हैं ,हर इंसान के जीवन में
भले मुद्दत गुजर जाये , बे दिल के पास होते हैं


जो दिल कि बात सुनता है बही दिलदार है यारों
दौलत बान अक्सर तो असल में दास होते हैं


अपनापन लगे जिससे बही तो यार अपना है
आजकल तो स्वार्थ सिद्धि में  रिश्ते नाश होते हैं

धर्म अब आज रुपया है कर्म अब आज रुपया है
जीवन के खजानें अब, क्यों सत्यानाश होते हैं

समय रहते अगर चेते तभी तो बात बनती है
बरना नरक है जीबन , पीढ़ियों में त्रास होते हैं


 
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 11 नवंबर 2013

ना जाने ऐसा क्यों होता






निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है
ना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी है

ये सांसे ,जिंदगी और दिल सब कुछ   तो पराया है
क्यों आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है 

मदन मोहन सक्सेना 

बुधवार, 6 नवंबर 2013

मेरी पोस्ट जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया में


मेरी पोस्ट मंगल पर मंगल ( भारत का प्रयास)  जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया में

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट मंगल पर मंगल ( भारत का प्रयास) जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया )  को जागरण जंक्शन में शामिल किया गया है .


 

Dear User,

Your मंगल पर मंगल ( भारत का प्रयास) has been featured on Jagran Junction

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Thanks!
JagranJunction Team


http://madansbarc.jagranjunction.com/2013/11/05/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A4%BE/





















मंगल पर मंगल ( भारत का प्रयास)
मंगल ग्रह के बारे में जानने की उत्सुकता पूरी दुनिया को है
देश-दुनिया के खगोलविदों के बीच अध्ययन के लिए
यह बेहद रोमांचक विषय रहा है.
अमेरिका और रूस समेत कई यूरोपीय देश
पिछले कुछ दशकों से मंगल ग्रह पर पहुंचने
और वहां इनसान को बसाने की संभावनाओं का पता लगाने में जुटे हुए हैं.
इस अभियान में भारत भी शामिल होना चाहता है.
आज
भारत ने अपने पहले मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान (एमओएम) के लिए
ध्रुवीय रॉकेट को आज यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से
सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इतिहास रच दिया.
चुनिंदा देशों में शामिल होने के प्रयास के लिए
भारत का यह पहला अंतर ग्रहीय अभियान है.
गल ग्रह के बारे में जानने की उत्सुकता पूरी दुनिया को है
देश-दुनिया के खगोलविदों के बीच अध्ययन के लिए
यह बेहद रोमांचक विषय रहा है.
अमेरिका और रूस समेत कई यूरोपीय देश
पिछले कुछ दशकों से मंगल ग्रह पर पहुंचने
और वहां इनसान को बसाने की संभावनाओं का पता लगाने में जुटे हुए हैं.
इस अभियान में भारत भी शामिल होना चाहता है.
उम्मीद की जा रही है कि यह अंतरिक्ष यान
इस ग्रह के दोनों हिस्सों की जानकारी मुहैया करा पाने में सक्षम होगा.
भारत इस मिशन के जरिये दुनिया को
यह संदेश देने के साथ ही यह भरोसा दिलाना चाहता है
कि उसकी तकनीक इस लायक है, जिसके सहारे
मंगल की कक्षा में अंतरिक्ष यान को भेजा जा सकता है.
इसके अलावा, इस मिशन का कार्य
मंगल पर जीवन की संभावनाओं का पता लगाना
इस ग्रह की तस्वीरें खींचना
और वहां के पर्यावरण का अध्ययन करना है.
इस अभियान में
अत्यधिक धन खर्च होने की आशंका जतायी गयी है
जिसके चलते इस अभियान की आलोचना भी की जा रही है
अंतरिक्ष यान के साथ कई प्रकार के प्रयोगों को अंजाम देने के लिए
अनेक उपकरण भी भेजे जा रहे हैं
इन सभी उपकरणों का वजन तकरीबन 15 किलोग्राम है
मंगल की सतह, वायुमंडल और खनिज आदि की जांच के लिए
उपकरण भेजे जा रहे हैं.
यह अंतरिक्ष यान मुख्य रूप से मंगल पर
मीथेन गैस की मौजूदगी बारे में पता लगायेगा.
मीथेन गैस को जीवन की संभावनाओं के लिए
एक अहम कारक माना जाता है.
यह बताया गया है कि लॉन्च होने के बाद
मार्स सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने के बाद
करीब 10 महीने तक अंतरिक्ष में घूमता रहेगा.
इस दौरान वह अपने प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल करेगा
और सितंबर, 2014 तक उसके मंगल की कक्षा तक पहुंच जाने की संभावना है.
किन्तु मौलिक चिंता का विषय
ये है कि
भारत में भले ही
हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने की योजना पूरी नहीं हुई हो
लेकिन देश का शीर्ष नेतृत्व और हमारे वैज्ञानिक
मंगल पर इनसान को बसाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं
इतना ही नहीं
देश में करोड़ों की आबादी शौचालय की सुविधा से महरूम हो
तो ऐसे में इस तरह के अभियान पर
अरबों रुपया पानी की तरह बहाना
कुछ हद तक चिंतनीय जरूर लगता है.
कुछ लोगों ने चिंता जतायी है
कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा
कि आखिरकार भारत मंगल मिशन को इतनी तवज्जो क्यों दे रहा है
जबकि देश में आधे से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं
और अब तक देश में आधे से अधिक परिवारों को
सरकार समुचित शौचालय
और स्वच्छ मौलिक सुविधाएं नहीं मुहैया करा पायी है.
इस अभियान के आलोचकों का तो यहां तक मानना है
कि एशिया में अब तक किसी भी देश ने
मंगल अभियान शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटायी
तो भारत क्यों इस दिशा में आगे बढ़ रहा है
इसके जवाब में
इसरो के मुखिया राधाकृष्णन का कहना है
कि मंगल अभियान एक ऐतिहासिक जरूरत है
खासकर जब यहां पानी की खोज की जा चुकी है
तो इस ग्रह पर स्वाभाविक जीवन की संभावनाएं भी तलाशी जा सकती हैं.



प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना








मेरी पोस्ट धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा ) जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया में

मेरी पोस्ट धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा ) जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया में

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा ) जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया )  को जागरण जंक्शन में शामिल किया गया है .

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धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )
आज   यानि शुक्रबार ,दिनांक नवम्बर एक दो हज़ार तेरह को पुरे भारत बर्ष में धनतेरस मनाई जायेगी। सबाल ये है कि आज के समय में कितनी जरुरत है धनतेरस को मनाने की।रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।धनतेरस के दिन सोना, चांदी के अलावा बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था। इस अमृत कलश को मंगल कलश भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया था। यही कारण है आम जन इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।  
आधुनिक युग की तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा आज भी कायम है और समाज के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं।  हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी केदिन धन्वतरि त्रयोदशी मनायी जाती है। जिसे आम बोलचाल में 'धनतेरस' कहा जाता है। यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।          
आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है।  पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।            
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।           
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।     
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।       
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है।  धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं।  दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।             
रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।


मदन मोहन सक्सेना